महाभारत काल से पूर्व कम्पिल (काम्पिल्य) दक्षिण पांचाल की राजधानी रही है जिसके राजा द्रुपद हुआ करते थे। चारों युगों के केन्द्र वाली ऐतिहासिक नगरी कम्पिल जैन और बौद्ध धर्म के लिए भी प्रमुख धार्मिक स्थान है। इसके अलावा मुग़ल काल में बादशाह औरंगजेब का भी यहाँ आगमन हुआ है।
महाभारत के समय में पांचाल प्रदेश की राजधानी रही कम्पिल जिला मुख्यालय से 45 किमी (पश्चिम) दूर है। इसको स्वर्ग द्वारी, काली नगरी, मोक्ष नगरी के नाम से भी जानते हैं। इसकी गणना भारत के प्राचीनतम नगरों में है। इसका प्राचीन नाम काम्पिल्य था। इसका उल्लेख रामयण तथा महाभारत में भी मिलता है। महाभारत में इसका उल्लेख द्रौपदी के स्वयंवर के समय किया गया है कि राजा द्रपुद ने द्रौपदी स्वयंवर यहाँ आयोजित किया था। यहाँ कपिल मुनि आश्रम भी है जिसके अनुरूप यह नामकरण प्रसिद्ध हुआ। कम्पिल जैन धर्म का भी प्रसिद्ध पवित्र स्थल है। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव ने इस नगर को बसाया तथा अपना पहला उपदेश दिया। यह तेरहवें तीर्थाकर स्वामी विमलनाथ की जन्मस्थली भी है। स्वामी विमलनाथ ने यहीं पूरा जीवन व्यतीत किया और कामनिरोध तपस्या की तथा कामजीत अर्जित की थी। वर्तमान में यहाँ दो प्रसिद्ध श्वेताम्बर तथा दिगम्बर जैन मंदिर है। भगवान श्रीराम के भाई शत्रुघन द्वारा स्थापित शिवलिंग यहाँ के रामेश्वरनाथ मंदिर में आज भी विद्ममान है। शत्रुघन ने लवणसूर को मारने के लिये मथुरा जाते समय यहाँ शिवलिंग स्थापित किया था। रामेश्वरनाथ की आराधना से ही शत्रुघन ने लवणसूर जैसे महाबली का वध किया। बौद्ध साहित्य में भी कांपिल्य का बुद्ध के जीवनचरित के सम्बन्ध में वर्णन मिलता है। प्रसिद्धि है कि इसी स्थान पर बुद्ध ने कुछ आश्चर्यजनक कार्य किये थे, जैसे स्वर्ग में जाकर अपनी माता को उपदेश देने के पश्चात् वह इसी स्थान पर उतरे थे। चीनी यात्री युवान च्वांग (ह्वेनसांग) ने भी सातवीं सदी ई. में इस नगर को अपनी यात्रा के प्रसंग में देखा था। आज भी यहाँ एक अति प्राचीन टीला मौजूद है जो राजा द्रुपद का किला हुआ करता था। हालाँकि पुरातात्व विभाग में संरक्षित है बावजूद इसके खंडर में तब्दील हो चुका है। यहाँ एक द्रौपदी कुण्ड भी है जिससे (महाभारत की कथा के अनुसार) द्रौपदी और धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ था। पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी खुदाई में कुण्ड से बड़े परिमाण की संभवत: मौर्यकालीन ईटें भी निकली है। मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने यहाँ पर मुग़ल घाट का भी निर्माण कराया था। यहाँ एक 11 खंडीय विशाल मंदिर भी है जिसको देखने के लिए दूर-दराज़ से लोग आते रहते है।
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