फर्रुखाबाद जनपद का पूरा क्षेत्र ऐतिहासिक पौराणिक गाथाओ से समृद्ध है। यहाँ अनेको ऋषि - मुनियों के आश्रम जगह - जगह आज भी मौजूद है। जनपद की सीमा में कम्पिल से लेकर खुदागंज तक बहती गंगा नदी के तट पर अनेक ऋषियों ने तपस्या की है जिसमे श्रृंगीरामपुर अपना विशेष स्थान रखता है।
जिला मुख्यालय से लगभग 15 किमी दूरी पर बसा श्रृंगीरामपुर पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता हैं। मान्यता है कि भगवन राम के जन्म से पूर्व राजा दशराज का पुत्र यज्ञ संपन्न कराने वाले श्रृंगी ऋषि का यहाँ जन्म हुआ था। अपनी माता के सामान सिर पर श्रृंग होने के कारण पिता विभाण्डक ने इनका नाम श्रृष्टा श्रृंग रखा था। तपस्या के पश्चात् इसी स्थान पर श्रृंगी ऋषि ने अपने श्रंगो का परित्याग किया था उसी समय से यह स्थान तीर्थ स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान अति पवित्र माना जाता है, ऐसी यहां से गंगा जल ले जाकर ज्योर्तिलिंगों पर चढ़ाने से भारी पुण्य लाभ होता है। प्रतिवर्ष यहां दो बार भव्य मेला लगता है और हजारों कांवरिये यहां से गंगा जल भरकर भोलेनाथ को चढ़ाने के लिए लेकर जाते हैं। यहां श्रृंगीऋषि का आश्रम तथा भगवान शिव का मन्दिर है। इसके अलावा यह क्षेत्र ग्वालियर के राजा सिंधिया के राज्य का भी हिस्सा रहा है। राज्य की ओर से गंगा पूजन के लिए यहाँ गद्दी स्थापित की गयी थी जो “महंत की गद्दी” के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं कुछ दूरी पर ही ग्वालियर राज्य द्वारा बनवाए गये घाट, शिव मंदिर व हवेली है। श्रृंगीरामपुर के लगभग पांच किमी की परिधि में ही च्यवन ऋषि और धौम्य ऋषि के आश्रम भी हैं।