Friday, May 21, 2021

फर्रुखाबाद : ऋषियों की तपोभूमि है श्रृंगीरामपुर व इसके आसपास का क्षेत्र

 फर्रुखाबाद जनपद का पूरा क्षेत्र ऐतिहासिक पौराणिक गाथाओ से समृद्ध है। यहाँ अनेको ऋषि - मुनियों के आश्रम जगह - जगह आज भी मौजूद है। जनपद की सीमा में कम्पिल से लेकर खुदागंज तक बहती गंगा नदी के तट पर अनेक ऋषियों ने तपस्या की है जिसमे श्रृंगीरामपुर अपना विशेष स्थान रखता है।



जिला मुख्यालय से लगभग 15 किमी दूरी पर बसा श्रृंगीरामपुर पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता हैं। मान्यता है कि भगवन राम के जन्म से पूर्व राजा दशराज का पुत्र यज्ञ संपन्न कराने वाले श्रृंगी ऋषि का यहाँ जन्म हुआ था। अपनी माता के सामान सिर पर श्रृंग होने के कारण पिता विभाण्डक ने इनका नाम श्रृष्टा श्रृंग रखा था। तपस्या के पश्चात् इसी स्थान पर श्रृंगी ऋषि ने अपने श्रंगो का परित्याग किया था उसी समय से यह स्थान तीर्थ स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान अति पवित्र माना जाता है, ऐसी यहां से गंगा जल ले जाकर ज्योर्तिलिंगों पर चढ़ाने से भारी पुण्य लाभ होता है। प्रतिवर्ष यहां दो बार भव्य मेला लगता है और हजारों कांवरिये यहां से गंगा जल भरकर भोलेनाथ को चढ़ाने के लिए लेकर जाते हैं। यहां श्रृंगीऋषि का आश्रम तथा भगवान शिव का मन्दिर है। इसके अलावा यह क्षेत्र ग्वालियर के राजा सिंधिया के राज्य का भी हिस्सा रहा है। राज्य की ओर से गंगा पूजन के लिए यहाँ गद्दी स्थापित की गयी थी जो “महंत की गद्दी” के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं कुछ दूरी पर ही ग्वालियर राज्य द्वारा बनवाए गये घाट, शिव मंदिर व हवेली है। श्रृंगीरामपुर के लगभग पांच किमी की परिधि में ही च्यवन ऋषि और धौम्य ऋषि के आश्रम भी हैं।

फर्रुखाबाद : महाभारत कालीन पांचाल महाजनपद के प्रमुख नगर संकिसा में महात्मा बुद्ध ने दिया था धर्मोपदेश

 महाभारत काल में पांचाल महाजनपद का प्रमुख नगर संकिसा महात्मा बुद्ध के समय में भी ख्याति प्राप्त रहा है। अपने समय में सम्राट अशोक ने यहाँ हस्ति स्तम्भ का भी निर्माण कराया था। जैन धर्म के तेरहवें तीर्थंकर स्वामी विमलनाथजी का यह ज्ञान स्थान माना जाता है। कनिंघम ने अपनी कृति में संकिसा का विस्तार से वर्णन किया है।



महाभारत और महाजनपद काल में यह पांचाल का प्रसद्ध नगर संकिसा का रामायण में जिक्र महाराज जनक के छोटे भाई कुशध्वज के राज्य के रूप में आता है। बौद्ध इतिहास में संकिसा की चर्चा अलग-अलग तरीके से होती है। बुद्ध के जीवन-प्रसंगों से जुड़े आठ प्रमुख स्थलों में भी इसकी गणना होती है। बुद्धत्व प्राप्ति के सात वर्ष बाद ही यहाँ पर बुद्ध ने अभिधम्म की देशना दी थी। भगवान् बुद्ध यहाँ श्रावण पूर्णिमा के दिन आये थे इसलिए श्रावण पूर्णिमा के दिन यहाँ उत्सव मनाया जाता है और भव्य मेले का आयोजन होता है।

वर्तमान संकिसा जनपद फर्रूखाबाद का एक पौराणिक एवं ऐतिहासिक गांव है। इसके समीप काली नदी बहती है जिसका प्राचीन नाम इक्षुमति था। महात्मा बुद्ध के समय से इसका महत्व बढ़ा है। इस स्थान का बौद्ध के जीवन से विशेष सम्बंध है। मान्यता है कि बुद्ध भगवान स्वर्ग का आगमन तथा वर्षावास हुआ। बौद्ध साहित्य में इसकी चर्चा बहुत मिलती है तथा महाभारत में भी इसका उल्लेख किया गया है। भारतीय एवं यूनानी कलाकारों नें संकिसा में बौद्ध के अवतरण का चित्रण उनके जीवन की अन्य प्रमुख घटनाओं के साथ बहुसंख्यक कलाक्रतियों में किया है। यहाँ पर एक विशाल प्राचीन टीला है जो पुरातत्व विभाग में संरक्षित। यहाँ आने वाले बौद्ध लोग इसकी परिक्रमा करते हैं। बर्मा, चीन, श्रीलंका आदि से यहाँ दर्शनार्थी आते रहते हैं। बौद्ध और अन्य श्रद्धालु लोग संकिसा आकर अपने को भाग्यशाली मानतें हैं। यहाँ पर अनेक दार्शनिक स्थाल श्रीलंका, म्यामांर, जापानी, भूटान, शाक्यमुनि, कोरिया, कम्बोडिया आदि बुद्धविहार है तथा पर्यटकों के ठहरने के लिये विश्रामग्रह भी हैं। इस टीले के ऊपर बिसारी देवी मंदिर भी है जनधारणा है कि आँख में तकलीफ होने पर संकिसा आकर देवी की पूजा-अर्चना करने पर आँखों की तकलीफ से मुक्ति मिल जाती है। टीले के पास ही सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया अशोक स्तम्भ (हस्ति स्तम्भ) है। टीले के कुछ दूरी पर टेढ़ा महादेव मंदिर और कन्थाई ताल है जो पुरातत्व विभाग में भी संरक्षित है। कनिंघम ने अपनी कृति “The Ancient Geography of India” में संकिसा का विस्तार से वर्णन किया है।

फर्रुखाबाद : चारों युगों का केन्द्र रही है ऐतिहासिक नगरी कम्पिल

 महाभारत काल से पूर्व कम्पिल (काम्पिल्य) दक्षिण पांचाल की राजधानी रही है जिसके राजा द्रुपद हुआ करते थे। चारों युगों के केन्द्र वाली ऐतिहासिक नगरी कम्पिल जैन और बौद्ध धर्म के लिए भी प्रमुख धार्मिक स्थान है। इसके अलावा मुग़ल काल में बादशाह औरंगजेब का भी यहाँ आगमन हुआ है।



महाभारत के समय में पांचाल प्रदेश की राजधानी रही कम्पिल जिला मुख्यालय से 45 किमी (पश्चिम) दूर है। इसको स्वर्ग द्वारी, काली नगरी, मोक्ष नगरी के नाम से भी जानते हैं। इसकी गणना भारत के प्राचीनतम नगरों में है। इसका प्राचीन नाम काम्पिल्य था। इसका उल्लेख रामयण तथा महाभारत में भी मिलता है। महाभारत में इसका उल्लेख द्रौपदी के स्वयंवर के समय किया गया है कि राजा द्रपुद ने द्रौपदी स्वयंवर यहाँ आयोजित किया था। यहाँ कपिल मुनि आश्रम भी है जिसके अनुरूप यह नामकरण प्रसिद्ध हुआ। कम्पिल जैन धर्म का भी प्रसिद्ध पवित्र स्थल है। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव ने इस नगर को बसाया तथा अपना पहला उपदेश दिया। यह तेरहवें तीर्थाकर स्वामी विमलनाथ की जन्मस्थली भी है। स्वामी विमलनाथ ने यहीं पूरा जीवन व्यतीत किया और कामनिरोध तपस्या की तथा कामजीत अर्जित की थी। वर्तमान में यहाँ दो प्रसिद्ध श्वेताम्बर तथा दिगम्बर जैन मंदिर है। भगवान श्रीराम के भाई शत्रुघन द्वारा स्थापित शिवलिंग यहाँ के रामेश्वरनाथ मंदिर में आज भी विद्ममान है। शत्रुघन ने लवणसूर को मारने के लिये मथुरा जाते समय यहाँ शिवलिंग स्थापित किया था। रामेश्वरनाथ की आराधना से ही शत्रुघन ने लवणसूर जैसे महाबली का वध किया। बौद्ध साहित्य में भी कांपिल्य का बुद्ध के जीवनचरित के सम्बन्ध में वर्णन मिलता है। प्रसिद्धि है कि इसी स्थान पर बुद्ध ने कुछ आश्चर्यजनक कार्य किये थे, जैसे स्वर्ग में जाकर अपनी माता को उपदेश देने के पश्चात् वह इसी स्थान पर उतरे थे। चीनी यात्री युवान च्वांग (ह्वेनसांग) ने भी सातवीं सदी ई. में इस नगर को अपनी यात्रा के प्रसंग में देखा था। आज भी यहाँ एक अति प्राचीन टीला मौजूद है जो राजा द्रुपद का किला हुआ करता था। हालाँकि पुरातात्व विभाग में संरक्षित है बावजूद इसके खंडर में तब्दील हो चुका है। यहाँ एक द्रौपदी कुण्ड भी है जिससे (महाभारत की कथा के अनुसार) द्रौपदी और धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ था। पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी खुदाई में कुण्ड से बड़े परिमाण की संभवत: मौर्यकालीन ईटें भी निकली है। मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने यहाँ पर मुग़ल घाट का भी निर्माण कराया था। यहाँ एक 11 खंडीय विशाल मंदिर भी है जिसको देखने के लिए दूर-दराज़ से लोग आते रहते है।

गंगा के आँचल में बसा फर्रुखाबाद धर्म ज्ञान और आध्यात्म का रहा है केन्द्र

 मैं फर्रुखाबाद हूँ ! मेरे आसपास का क्षेत्र धार्मिक व पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। मैं महाभारत, बौद्ध, जैन, सूफी, मुग़ल, स्वतंतत्रा संग्राम आदि दौरों से गुज़रा हूँ। कला, साहित्य, संगीत, राजनीति, खान-पान आदि में भी किसी से कम नही हूँ।



उत्तर प्रदेश के प्रमुख जनपदों में अपनी पहचान रखने वाले फर्रूखाबाद की स्थापना 27 दिसम्बर 1714 ई० को नवाब मोहम्मद खाँ बंगश द्वारा दिल्ली के शासक फर्रुखसियर के नाम पर हुई लेकिन इसका इतिहास कई हज़ार वर्ष प्राचीन है। काशी की तरह यहाँ पर भी गंगा नदी अर्धचन्द्राकार रूप में बहती है जिसकी वजह से इसको अपराकाशी भी कहा जाता है। गंगा नदी के आंचल में बसा यह जनपद धर्म, ज्ञान, आध्यात्म, साहित्य, कला एवं संस्कृति से सम्बद्ध रहा है।

तीन तहसीलों वाले फर्रुखाबाद में पहले कन्नौज भी सम्मानित था लेकिन 18 सितम्बर 1997 को इसे विभाजित कर दिया गया। जनपद की कुल जनसंख्या 18,87,577 (2011 के अनुसार) है तथा कुल साक्षरता 72% है। जिले की अधिकतर प्रशासनिक इकाइयाँ फतेहगढ़ में हैं। यहाँ की अर्थव्यवस्था का मुख्य साधन कृषि है। जिले के ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश लोग खेती व पशुपालन पर निर्भर हैं। यहाँ की प्रमुख फसलें आलू, मटर, चना, जौ, गेहूँ, बाजरा, सूरजमुखी, तम्बाकू, आम, अमरूद, आदि की उपज होती है। राष्ट्रीय उत्पादन का 10 प्रतिशत आलू उत्पादन करने वाले इस जनपद में लगभग एक सैकड़ा कोल्ड स्टोरेज हैं। इसके अलावा यहाँ पर लघु एवं कुटीर उद्योगों का भी योगदान है। यहाँ का छपाई उद्योग व ज़रदोज़ी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का रहा है। वही तांबा व पीतल के बर्तन के उद्योग की भी एक अलग पहचान है। कायमगंज में तम्बाकू का उद्योग तथा कमालगंज में बीढ़ी उद्योग जिले की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान रखते हैं। फर्रूखाबाद प्राचीन समय से ही बहुत प्रसिद्ध रहा है इसीलिए यहाँ का इतिहास भी रोचक है। पर्यटन की दृष्टि से अगर बात की जाये तो कम्पिल एवं संकिसा यहाँ के मुख्य पर्यटन केंद्र हैं जो उ.प्र. पर्यटन विभाग की सूची में सम्मिलित हैं।

©aqibfarrukhabadi

Thursday, January 16, 2020

सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं

सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं
ना समझ था पहले अब समझदार हो गया हूं।
बहुत गुस्सा था इस व्यवस्था के खिलाफ
अब उसी का भागीदार हो गया हूं।

दिल पसीजता था राह चलते हुए पहले
कलम हाथ में आते ही दिमागदार हो गया हूं।

कभी नफरत थी कुछ छपी हुई खबरों से मुझे
आज उन्हीं खबरों का तलबगार हो गया हूं।

सोचा था अलग राह पकडूंगा पत्रकार बनकर
अब मैं भी भेड़ चाल में शुमार हो गया हूं।

लिखकर बदलने चला था दुनिया को मैं
नौकरी की वफादारी में खुद बदल गया हूं।

मुझे दिख रही है देश की तरक्की सारी
क्योंकि अब मैं नेताओं का यार हो गया हूं।

इंकलाब, वंदे मातरम कई नारे आते हैं मुझे
पर क्या करूं विज्ञापनों के कारण लाचार हो गया हूं।

ढूंढता था पहले देश की बेहाली के जिम्मेदारों को
समझ गया हूं सब कुछ, अब मैं समझदार हो गया हूं,

सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं।

Friday, September 8, 2017

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ “मीडिया” खतरे में...!


लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ “मीडिया” खतरे में...!
(मोहम्मद आकिब खाँन)

देश में 05 सितम्बर 2017 को गौरी लंकेश जैसी महान पत्रकार की हुई हत्या समाज के लिए निंदनीय है। उनकी हत्या के बाद सोशल मीडिया पर उनके लिए प्रयोग की गयी अभद्र भाषा हमारी सांस्कृति को शोभा नहीं देता। इस अभद्र भाषा का प्रयोग करने वालों पर कार्यवाही होनी चाहिए। भारत में पत्रकारों की हत्या का ये कोई पहला मामला नही है। पत्रकारों की हत्या का सिलसिला 25 मार्च 1931 से शुरू हुआ था जब उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक साम्प्रदायिक हिंसा में गणेश शंकर विद्यार्थी जी की हत्या कर दी गयी थी।
इसके अलावा आजाद भारत में पत्रकारों की हत्याओं के ऐसे कई मामले है जिनमे राजदेव रंजन, हेमंत यादव, संजय पाठक, संदीप कोठरी, जागेन्द्र सिंह, एम.वी.एन. शंकर, तरुण कुमार आचार्य, सांई रेड्डी, राजेश वर्मा, रामचंद्र छत्रपति, थोनाओजम ब्रजमानी सिंह, वी. शैल्वाराज, अधीर राय, एन.ए. लालरुहलु, इरफ़ान हुसैन, शिवानी भटनागर, बक्शी तीरथ सिंह, उमेश डोभाल जैसे महान पत्रकारों की हत्याएं हुई है। यह हत्याएं किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे समाज की हत्या है। मीडिया समाज की आवाज होती है और इस आवाज़ का लगातार गला घोटा जा रहा है। कभी डरा-धमकाकर तो कभी लालच देकर समाज की आवाज़ को निरंतर चुप कराया जाता रहा है।
पत्रकारों की सुरक्षा पर निगरानी रखने वाली प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय संस्था कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने वर्ष 2016 में 42 पन्नो की अपनी  विशेष रिपोर्ट में कहा था भारत में रिपोर्टरों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा नहीं मिलती है। इसमें कहा गया था कि भारत में 1992 के बाद से 27 ऐसे मामले दर्ज हुए जब पत्रकारों को उनके काम के सिलसिले में क़त्ल किया गया, लेकिन किसी भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हो सकी। इस रिपोर्ट ने भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकारों की जान को खतरा बताया क्यूंकि इन 27 में 50% पत्रकार भ्रष्टाचार सम्बन्धी मामलों पर ख़बरें कवर करते थे।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ जर्नलिस्ट (आईएफजे) के अनुसार वर्ष 2016 में विश्वभर में 93 पत्रकारों की हत्या कर दी गयी। वही भारत में पिछले वर्ष करीब पांच पत्रकारो की हत्या की गयी। मीडिया से जुड़े लोगों की हत्या के मामले में विश्वभर में भारत आठवें स्थान पर है। ग्लोबल एडवोकेसी ग्रुप के रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने भारत को पत्रकारों के लिए एशिया का सबसे खतरनाक देश बताया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि पत्रकारों की हत्या के मामले में भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी आगे है।

आजाद भारत में पत्रकारो की हत्याओं पर एक नजर

क्र०सं०
दिनांक
नाम
मीडिया आउटलेट
स्थान
1
27 फ़रवरी 1992
बक्शी तीरथ सिंह
हिन्द समाचार
धुरी, पंजाब
2
27 फ़रवरी 1999
शिवानी भटनागर
द इण्डियन एक्सप्रेस
नयी दिल्ली
3
13 मार्च 1999
इरफ़ान हुसैन
आउटलुक
नयी दिल्ली
4
10 अक्तूबर 1999
एन.ए. लालरुहलु
शान
मणिपुर
5
18 मार्च 2000
अधीर राय
स्वतंत्र पत्रकार
देवगढ़, झारखंड
6
31 जुलाई 2000
वी. शैल्वाराज
नक्कीरन
पेराम्बलुर, तमिलनाडु
7
20 अगस्त 2000
थोउनाओजम ब्रजमानी सिंह
मणिपुर न्यूज़
इम्फाल, मणिपुर
8
21 नवम्बर 2002
रामचंद्र छत्रपति
पूरा सच
सिरसा, हरियाणा
9
23 जनवरी 2011
उमेश राजपूत
नयी दुनिया
छुरा, रायपुर, छत्तीसगढ़
10
20 अगस्त 2013
नरेन्द्र दाभोलकर
साधना
पुणे, महाराष्ट्र
11
07 सितम्बर 2013
राजेश वर्मा
आईबीएन-7
मुजफ्फरपुर
12
06 दिसम्बर 2013
सांई रेड्डी
देशबंधु
बाजीपुर
13
27 मई 2014
तरुण कुमार आचार्य
संबाद एवं कनक टीवी
गंजम, उड़ीसा
14
26 नवम्बर 2014
एम.वी.एन. शंकर
आंध्र प्रभा
छिलाकालुरीपेट, आंध्रप्रदेश
15
08 जून 2015
जगेन्द्र सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश
16
20 जून 2015
संदीप कोठरी
स्वतंत्र पत्रकार
कटंगी, बालाघाट, मध्य प्रदेश
17
04 जुलाई 2015
अक्षय सिंह
आज तक
झाबुआ, मध्य प्रदेश
18
13 अगस्त 2015
संजय पाठक
आज
फरीदपुर, बरेली, उत्तर प्रदेश
19
03 अक्तूबर 2015
हेमंत यादव
टीवी-24
चंदौली, उत्तर प्रदेश
20
13 मई 2016
राजदेव रंजन
हिंदुस्तान
सिवान, बिहार
21
05 सितम्बर 2017
गौरी लंकेश
गौरी लंकेश पत्रिके
बंगलौर, कर्नाटक

चूँकि मैं भी मीडिया के क्षेत्र से हूँ वर्तमान में मास कम्युनिकेशन (अंतिम वर्ष) का छात्र हूँ इससे पूर्व मैंने अपने गृह जनपद फर्रुखाबाद में “यूथ इण्डिया” समाचार पत्र में पत्रकार के रूप में कार्य किया जहाँ भू-माफियाओं के खिलाफ संपादक शरद कटियार के निर्देशन में समाचारों का  प्रकाशन करने के बाद धमकियों का सामना कर चुका हूँ। हालाँकि माता-पिता के मना करने पर कुछ ही समय में मुझे इस अखबार को छोड़ना पड़ा। मुझे नहीं मालूम मेरा यह फैसला सही था या गलत...! लेकिन इस अखबार के (यूथ इण्डिया) संपादक शरद कटियार को झूठे मुक़दमे में फंसाकर 19 अगस्त 2017 को गिरफ्तार किया गया है। क्यूंकि वह अपनी धारदार कलम से सफेदपोश भू-माफियाओं एवं गुंडों की असलियत को सामने लाने का कार्य करते रहे है। इससे पूर्व उनपर कई जानलेवा हमले भी हो चुके है। लेकिन आज भी वह इस आन्दोलन से पीछे नहीं हट रहे है।
अगर ऐसा ही रहा तो यकीनन मीडिया का अस्तित्व ही मिट जायेगा। मीडिया का कार्य समाज की बुराईयों से पर्दा उठाना और सच्चाई को सामने लाना है जबकि मीडिया को सफेदपोश अपने इशारो पर नाचने देखना चाहते है। अब वक़्त है कि प्रत्येक नागरिक को मीडिया की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। झूठी और बिकाऊ पत्रकारिता से समाज को कोई लाभ नहीं है। सरकार को चाहिए कि कलम के कातिलों को कठोर से कठोर सजा दी जाये एवं मीडिया की सुरक्षा एवं स्वतंत्रता के लिए कानून बनाया जाये और अगर ऐसा कर पाना संभव न हो तो लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ “मीडिया” को लोकतंत्र से ही बाहर कर देना चाहिए।
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©मोहम्मद आकिब खाँन (जर्नलिस्ट एवं सोशल एक्टिविस्ट)
मो० +91-9044441004

नोट:- इस लेख को प्रकाशित करने से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है तथा लेखक का नाम लिखना अनिवार्य है।