Tuesday, August 1, 2017

उत्तर प्रदेश के राजकीय प्रतीक

उत्तर प्रदेश के राजकीय प्रतीक

क्र० सं०
शीर्षक
हिंदी नाम
अंग्रेज़ी नाम
वैज्ञानिक नाम
1
पशु
बारहसिंघा
स्वैम्प डियर
रूसरवस डुवाओसेली
2
पक्षी
सारस
क्रेन
ग्रूस एंटीगोन
3
पुष्प
टेसू या ढाक
पलाश
ब्यूटिया मोनोस्पर्मा
4
मछली
मोय
चीतल
चिताला
5
पेड़
अशोक
अशोक
सराका असोका

पशु(बारहसिंघा):- 
Swamp Deer
इसके सींग बहुत बड़े तथा बहुशाखित होती है।
 जिनकी संख्या सामान्यतः 12 तक पहुँच जाती है इसलिए इसे बारहसिंघा कहा जाता है। दलदली जगहों में इनका प्राकृतवास होने के कारण इन्हें अंग्रेजी में स्वैम्प डियर” कहा गया है। यह भारत वर्ष के मात्र तीन स्थानों उत्तर प्रदेश के तराई वन क्षेत्रउत्तर पूर्व स्थित असम राज्य एवं मध्य प्रदेश के आरक्षित वन क्षेत्रों में पाया जाता है। मूलतः शाकाहारी प्रवृत्ति के इस जीव की ऊँचाई 130-135 सेमी.वजन लगभग 180 किग्रा. तथा सींगों की औसत लम्बाई 75 सेमी. होती है। इसका प्राकृतवास मुख्यतः दलदली व कीचड़ वाले ऊँची घास से आच्छादित क्षेत्र हैं। उत्तर प्रदेश में यह दुधवा राष्ट्रीय उद्यानकिशनपुर वन्य जीव विहार आदि में भी पाया जाता है। यह विश्व की संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में सम्मिलित है।

पक्षी (सारस):- 
Sarus Crane
सर अर्थात् सरोवर के पास इसका प्राकृतवास होने के कारण इसे सारस कहा जाता है। इसके नर और मादा एक साथ जोड़े में रहते हैं तथा लोकमान्यता में आदर्श दम्पत्ति के प्रतीक रूप में देखे जाते हैं।
 यह शुद्ध एवं स्वस्थ पारिस्थितिकीय तन्त्र वाले जलाशयों के पास ही मिलता है। यह लगभग फीट ऊँचाई तथा फीट तक पंखों के विस्तार के साथ कद में उड़ने वाले पक्षियों में सबसे ऊँचा पक्षी है। सारस उत्तरी एवं केन्द्रीय भारतपाकिस्तान तथा नेपाल देश में पाए जाते है। इसके परों का रंग हल्का स्लेटी राख जैसा होता है तथा शिखर हल्के चिकने हरे पंखों से आच्छादित रहता है। ये कठोर परिस्थितियोंजैसे अत्यधिक ठंडक में भी सुगमता से जीवित रहते हैं। दलदली भूमि क्षेत्रों में ह्रास तथा प्राकृतवास संकुचित होने के कारण सारस संकटग्रस्त प्राणी हो गया है।

पुष्प (टेसू या ढाक):- 
Palash
श्रेष्ठ गुण वाली पत्तियाँ धारण करने के कारण इसे पलाश कहा गया है। इसकी पत्तियों में भोजन या प्रसाद लेना बहुत लाभदायक माना जाता है। इसके बीज पेट के कीड़े दूर करने की श्रेष्ठ औषधि हैं। यह वातरोग नाशक है। होली पर इसके फूल के रंग से होली खेली जाती है। आयुर्वेदिक क्षार प्राप्त करने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ वृक्ष है। यह धीरे-धीरे बढ़ने वाला टेढ़ा-मेढ़ा मध्यम ऊँचाई का पर्णपाती वृक्ष है। सामान्यतः इसे टेसू, ढाकपलाश एवं जंगल की आग के नाम से जाना जाता है। इसके तीन पर्णफलक होते हैं। इसके डेढ़ से दो इंच आकार के सुर्ख नारंगी लाल रंग के पुष्प फरवरी से मार्च के मध्य निकलते हैं। यह एक बहुपयोगी वृक्ष है। इसके पत्तों से दोने और पत्तल बनाये जाते हैं तथा यह चारा पत्तीरेजिनरंगऔषधि एवं चारकोल बनाने के काम भी आता है।

मछली (मोय):- 
Chitla
इस मछली की पीठ पर सुन्दर चित्ती पाए जाने के कारण इसको चीतल कहा गया है। चिताला संकटग्रस्त मत्स्य प्रजाति है जिसे साधारणतः फैदरबैक के नाम से जाना जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इसे चीतलमोयपारी सीतुल वालाकाण्डल्ला आदि नामों से भी जाना जाता है। मीठे जल में मत्स्य पालन के लिए चीतल एक अच्छी एवं पौष्टिक प्रजाति की मछली है। यह भारत में गंगायमुनाब्रह्मपुत्रकोसीगोमतीगेरुआसतलुजकेनबेतवा एवं महानदी नदियों में पायी जाती है। इस प्रजाति का निवास बड़ी नदियोंझीलोंजलाशयों तथा रुके हुए पानी में है। शल्क छोटे होते हैं। इस प्रजाति मात्र में ही छोटी या वयस्क मछली के शरीर पर प्रायः सुनहरी या रूपहली लगभग 15 खड़ी धारियाँ होती है। इसकी अधिकतम लम्बाई 150 सेमी. एवं अधिकतम वजन 14 किग्रा. होता है। यह मछली द्विजननांगी होती हैजिसमें नर दो वर्षों के बाद तथा मादा वर्षों के बाद परिपक्व होती है। यह प्रजाति संकटापन्न हो गयी है।


पेड़ (अशोक):- 
Ashok
लोकमान्यता में शोक नाशक होने के कारण इसे अशोक कहा गया है। इसकी छाल से अशोकारिष्ट दवा बनती है। पौराणिक पंचवटी का यह सदस्य वृक्ष है। यह आर्द्र क्षेत्र का वृक्ष है। हिन्दू नववर्ष के प्रथम दिन इसके फूल की कली वर्ष भर शोक रहित रहने के लिए खायी जाती है। औसत ऊँचाई के इस सदाबहार पवित्र वृक्ष का वर्णन हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसकी पत्तियाँ संयुक्त होती हैं तथा फूल और फल बड़े गुच्छों में फरवरी से अप्रैल के मध्य आते हैं। पौध रोपण हेतु इसकी नर्सरी पौध बीजों द्वारा उत्पादित की जाती है। सामान्यतः यह वृक्ष सघन छत्र होने के कारण उद्यानोंमार्गों के किनारेआवास परिसरों व मंदिरों में लगाये जाते हैं।औषधीय गुणों के कारण यह आयुर्वेदिक औषधि बनाने में प्रयुक्त होता है। वर्तमान में यह प्रजाति संकटग्रस्त हो गयी है।

No comments:

Post a Comment